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Saturday, October 20, 2012

एक श्रद्धांजलि...भारत-चीन युद्ध के 50 वर्ष,


भारत-चीन युद्ध के 50 वर्ष, पर एक श्रद्धांजलि 
वन्देमातरम, भारत-चीन युद्ध के सैनिकों  शहीदों को नमन.....20 अक्टूबर 1962 को आरंभ हुआ व भारत-चीन युद्ध लगभग एक महीने तक चला था, जिसमें लगभग 4,000 जवान शहीद हुए थे। भारत और चीन के बीच युद्ध के 50 वर्ष बाद भी लोग इसका स्मरण करते पाए गए हैं। आजादी के बाद भारत का यह पहला युद्ध था, जिसमें उसे बुरी तरह पराजय देखनी पड़ी।..सन 1962 का भारत-चीन युद्ध. हर दिन सुबह से देर रात तक समाचार सुनना, तथा हताशा में डूब जाना. नेफा में लड़ाई चल रही
 थी; वहां केमांग वैली, बोमडीला, तेजपुर आदि के नाम हर रोज सुनने को मिलते थे 

 देश ने 50 वर्ष बाद भारत-चीन युद्ध के शहीदों का स्मरण व सम्मान 
किया गया  सैनिक तो सदा ही जान हथेली पर लिये रहते हैं, पर शहादत का स्मरण बड़ी आवश्यक बात है; उनकी याद को, शहादत को जीवित रखना  कवि प्रदीप ऐ मेरे वतन के लोगो' सरीखे देशभक्ति गीतों के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने 1962 के भारत-चीन युद्ध के मध्य शहीद हुए, सैनिकों की श्रद्धांजलि में ये गीत लिखा था...भावनात्मक तौर पर उन 4,000 जवानों को याद करना है....भारत ने 1962 के भारत-चीन युद्ध में शहीद हुए, सैनिकों को स्मरण कर 50 वर्ष के अवसर पर आज शहीदों का सम्मान.किया और इंडिया गेट स्थित अमर जवान ज्‍योति पर शहीदों कोश्रद्धांजलि दी गई ......

ऐ मेरे वतन् के लोगो ! तुम खूब लगा लो नारा ! ये शुभदिन है हम सबका ! लहरा लो तिरंगा प्यारा, पर मत भूलो सीमा पर ! वीरों ने है प्राण गँवाए ! कुछ याद उन्हें भी कर लो -२ ! जो लौट के घर न आए -2, ऐ मेरे वतन के लोगो ! ....एक श्रद्धांजलि

भारत चीनी आक्रमण से भारत ने सीखा है, कि आज के विश्व में यहाँ कमजोर देशों के लिए कोई स्थान नहीं है ... हम अपने स्वयं के निर्माण के एक अवास्तविक लोक में रह रहे हैं "
भारतीय प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा 1963 में, चीन के हाथों भारत की शर्मनाक हार के बाद, राज्यसभा में बयान' आया था  यह एक ऐसा नेता, जो सदा अपने स्वयं के काल्पनिक "चश्मे से अंतरराष्ट्रीय राजनीति देखता रहा, का एक आंख खोलने वाला वक्तव्य है  
1962 के भारत चीनी सीमा युद्ध में हार से उसे पता चला है, कि यहाँ वास्तव में विश्व की राजनीति में कमजोर देशों के लिए कोई स्थान नहीं है 
", राजनीतिक और कूटनीतिक क्षेत्रों में भी, महत्वपूर्ण परिवर्तन 1962 प्रकरण के माध्यम से आया था, और अधिक यथार्थवाद लाने का," भारत और चीन के बीच सीमा युद्ध के, आधिकारिक भारतीय इतिहास आलेख से 
भारत - चीन युद्ध गाथा, भारत के लिए आंख खोलने वाली थी  लेकिन 45 वर्ष बाद भी भारत के लोगों को पराजय की सही परिस्थितियों और कारण पता नहीं है, कि भारत की हार के लिए कारण, राजनैतिक नेतृत्व के रहे हैं  जनता के बीच लोकप्रिय धारणा है, कि चीन ने भारतीय विश्वास को धोखा दिया है और लद्दाख और नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी (नेफा) के क्षेत्र में हमारी सुरक्षा पर आक्रमण किया  वास्तव में हमारे नेता भ्रम के काल्पनिक लोक में रह रहे थे 
एक बात यह है, कि प्रतिकूल वातावरण में भारतीय सैनिकों द्वारा दिखाए गए अनुकरणीय साहस का फल था, कि दु:ख कष्ट के समय में पूरे राष्ट्र को एकजुट बनाये रखा  यह कहा जाता है कि वे जानते थे, उनकी मौत निश्चित है, तब भी राइफलों को छोड़ गए नहीं  नमन,... नमन,... नमन,...
उनके साहस को, 'ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आँख मुझे भरलो पानी', हार के बाद कवि प्रदीप द्वारा लिखे अमर गीत, में अभिव्यक्त किया जा सकता है 
आगे, ..तब यह गीत भारतीयों की आँखों में आँसू ले आया, जब यह 26 जनवरी, 1963 को, नई दिल्ली में सत्ता की पार्टी की बैठक में लता मंगेशकर द्वारा गाया गया था  गीत समाप्त हो गया, नेहरू आँसू बहाने लगे
आज तक, भारतीयों को यह गीत, हिमालय में भारतीय जवानों के सर्वोच्च बलिदान का स्मरण दिलाता है 
विश्लेषकों के मुताबिक, दोनों, चीन और भारत में 1962 के युद्ध के बारे में आलेखों, के नव वर्गीकरण के बाद, के नए तथ्यों के कारण एक विचार, युद्ध से पहले चीनी नीयत - प्रयोजन के बारे में उभरा है  आगे है....

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