YDMS चर्चा समूह

बिकाऊ मीडिया -व हमारा भविष्य

: : : क्या आप मानते हैं कि अपराध का महिमामंडन करते अश्लील, नकारात्मक 40 पृष्ठ के रद्दी समाचार; जिन्हे शीर्षक देख रद्दी में डाला जाता है। हमारी सोच, पठनीयता, चरित्र, चिंतन सहित भविष्य को नकारात्मकता देते हैं। फिर उसे केवल इसलिए लिया जाये, कि 40 पृष्ठ की रद्दी से क्रय मूल्य निकल आयेगा ? कभी इसका विचार किया है कि यह सब इस देश या हमारा अपना भविष्य रद्दी करता है? इसका एक ही विकल्प -सार्थक, सटीक, सुघड़, सुस्पष्ट व सकारात्मक राष्ट्रवादी मीडिया, YDMS, आइयें, इस के लिये संकल्प लें: शर्मनिरपेक्ष मैकालेवादी बिकाऊ मीडिया द्वारा समाज को भटकने से रोकें; जागते रहो, जगाते रहो।।: : नकारात्मक मीडिया के सकारात्मक विकल्प का सार्थक संकल्प - (विविध विषयों के 28 ब्लाग, 5 चेनल व अन्य सूत्र) की एक वैश्विक पहचान है। आप चाहें तो आप भी बन सकते हैं, इसके समर्थक, योगदानकर्ता, प्रचारक,Be a member -Supporter, contributor, promotional Team, युगदर्पण मीडिया समूह संपादक - तिलक.धन्यवाद YDMS. 9911111611: :

Wednesday, October 31, 2012

अँधेरे का साम्राज्य ? भाग-3,

अँधेरे का साम्राज्य ? भाग-3, ...Pl. Like it, join it, share it. Tag 50 frnds.
नितिन गडकरी को त्यागपत्र नहीं देना चाहिए, क्यों ?
भाजपा का चाल चरित्र चेहरा:- सीता माँ के चरित्र पर, मात्र एक धोबी के ऊँगली उठाने पर, उनके परित्याग को आज त्याग नहीं माना जाता ! अत; भगवान् राम के आदर्श का पालन करते, जब जब भाजपा ने नैतिकता की दुहाई के नाम पर, शर्मनिरपेक्ष मीडिया के ऊँगली उठाने पर, आदर्श व नैतिक श्रेष्ठता का पालन करते, अपने नेत्रत्व में परिवर्तन किया, परिणाम क्या हुआ ? नैतिक बल ऊपर नहीं हुआ, हीन भावना से ग्रसित, नैतिक रूप से कमज़ोर और हंसी की पात्र हो गयी ! तहलका जैसी बिकी हुई संस्थाओं के दबाव में अपने कई श्रेष्ठ नेता कल्याण का कल्याण कर, मदन लाल खुराना, बंगारू लक्ष्मण, विजय राजे, येदुरप्पा, रमेश पोखरियाल, को अपने से दूर कर दिया ! शर्मनिरपेक्ष मीडिया के शर्मनिरपेक्ष पत्रकार, भाजपा का मान मर्दन करते रहे ! "चाल चरित्र चेहरा" उपहास का विषय बना रहा ! जैसे कि त्यागपत्र देना या दिलवा कर, नैतिक श्रेष्ठता नहीं, अपराध कर लिया हो ! और यही कारण रहा, जिससे भाजपा के नेताओं की जनता का सामना करने की क्षमता कम हुई ! "चाल चरित्र चेहरा" भिन्न होकर भी, अपमान और कलंक झेलते रहे ? अपने गढ़ व सत्ता, उ.प्र., दिल्ली, राजस्थान, उत्तराखंड में खो दिये ! उमाँ भारती के साथ म.प्र. चला गया था, जाकर आया है ! बंगलोर को दक्षिणी गढ़ न बना सके ? ये सब करने के बाद भी, किसी पत्रकार के मुह से कभी ये सुना, कि हाँ, भाजपा ही ऐसी पार्टी है, जो कम से कम दागी लोगों पर कार्यवाही तो करती है ? इसके विपरीत, केवल गुजरात में मोदी के रूप में हमने सामना किया, उसके परिणाम सत्ता और छवि की रक्षा करने में सफल रहे ! सक्षम रूप से उभर कर आगे आये !
शर्मनिरपेक्ष कांग्रेस -मीडिया -आतंकी, गठजोड :-इसके ठीक विपरीत, सब जानते हैं, कालांतर में नेहरु, इंदिरा, 1984 के दंगे के जगदीश टाइटलर से लेकर आज के चिदम्बरम और खुर्शीद तक, सेकड़ों घोटालों में फंसे बड़े बड़े नेताओं को कांग्रेस ने हर बार, शर्मनिरपेक्षता की सारी सीमायें पार कर बचाया ! पहले तो कई बार इस्तीफ़ा दिलवाने का नाटक कर लेते थे, उसके बदले संगठन का पद दे कर, अब कम करते हैं ! वे विगत 65 वर्ष से इस देश पर, लूट का राज चला रहे हैं ! उन्हें इसके कारण कभी भी नीचा नहीं देखना पड़ा ? शर्मनिरपेक्ष बिकाऊ मीडिया साथ है, न ! जन समर्थन कम रह जाये, चोर चोर मोसेरे भाई कई मिल जाते हैं ! गंदे से गंदे समय में तंत्र मुट्ठी में है ! वहां तक बात जाने नहीं देते, जनता को मुर्ख बनाने के कई रास्ते हैं, हम मुर्ख बनते भी हैं ! इसका भरपूर लाभ आतंकी भी उठाते हैं !
भाजपा शासित -कांग्रेस शासित, राज्य का अंतर :- अंधे भी शासन का अंतर साफ देख कर सकते हैं, भ्रम के ग्रसित हम अकल के अंधे नहीं ! कालांतर में कभी कोई अफज़ल, कसाब तथा उनके मानवाधिकार नामक समर्थको का आतंकी नाग डसता है ! कभी कोई शर्मनिरपेक्षता का रावण, भिन्न भिन्न कानून के रूप में या भिन्न भिन्न न्याय के रूप में हमें छलता है ! जब पाखंडी खुजली, तीस्ता सीतलवाद अब जालसाज दमानिया जैसे मक्कारों के फरेब का साथ देता है ! इन सब को हम भिन्न भिन्न घटनाएँ न माने, मेकाले के 1935 से चले आ रहे, एक घिनोने व्यापक कुचक्र का अभिन्न अंग समझें ! ये सब उसके शर्मनिरपेक्ष पात्र हैं ! जो अपनी लकीर बड़ी करना नहीं, दूसरे की लकीर छोटी दर्शाना जानते हैं, वो इस धारणा को सिद्ध करना चाहते हैं, कि सारे दल भ्रष्ट व सारे नेता चोर हैं ! तभी तो अँधेरे का साम्राज्य बना रहेगा ! पूरे समाज में ही मूल्यों की जो गिरावट हुई है, उसका मूल कारण भी यही शर्मनिरपेक्षता है !
मुद्दा ये है, कि इस प्रकार, क्या गडकरी व हर नेता को हटाने से भाजपा भ्रष्टाचार की लड़ाई का नेत्रत्व कर पाएगी ? इस चक्रव्यह का लक्ष्य सनातन धर्म व परम्परा का साथ देने वाले सभी हैं ! यह चक्रव्यह कांग्रेस और कांग्रेस शासित सत्ता के समर्थन से भाजपा और भाजपा शासित सत्ता के विरूद्ध निरन्तर चल रहा है ! 
यह अंतर जब तक हम समझ नहीं लेते, अँधेरे का साम्राज्य बना रहेगा ! -तिलक
जीवन ठिठोली नहीं, जीने का नाम है | https://www.facebook.com/groups/549281355089431/

Monday, October 22, 2012

प्रवासी भारतीय सम्मेलन मंच, मोदी ही मोदी (Jan 2012)


प्रवासी भारतीय सम्मेलन मंच, मोदी ही मोदी (Jan 2012)
सेशन के मध्य, कई प्रवासी भारतीयों के मोदी के समर्थन में हूटिंग, तालियां बजाने और मोदी से, राजस्थान और केंद्र के शासकों को प्रेरणा लेने की सलाह से, कार्यक्रम में मौजूद यूपीए सरकार के केंद्रीय प्रवासी मामलों के मंत्री वायलार रवि बौखला गए। रवि ने मंच पर आकर एक प्रवासी भारतीय को झिड़क दिया, कि वे सलाह न दें, न ही व्यक्तिगत सवाल करें, दोनों में जमकर बहस हुई। वायलार रवि ने कहा, कि ये मंच व्यक्तिगत मामलों के लिए नहीं है, आप रूल-रेगुलेशन का पालन करिए। क्या समझते हैं आप।
..विस्तार से जाने ...

जयपुर। निवेश को लेकर राज्यों में प्रतिस्पर्धा के बीच प्रवासी भारतीय सम्मेलन का मंच आखिरी दिन राजस्थान और गुजरात के मुख्यमंत्रियों के लिए अखाड़ा बन गया। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के निशाने पर थे, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत। मोदी ने सोनिया गांधी का नाम लिए बिना, गहलोत पर निशाना साधा, तो परेशान होकर गहलोत ने मंच छोड़ दिया। हालात बिगड़ते देख केंद्रीय मंत्री वायलार रवि को दखल देना पड़ा।
मोदी ने की खिंचाई तो मंच छोड़ चले गए गहलोत
सम्मेलन में मुख्यमंत्रियों के संयुक्त सत्र के मध्य, नरेंद्र मोदी उस समय भड़क गए, जब अशोक गहलोत ने केंद्र की यूपीए सरकार और सोनिया गांधी की प्रशंसा के पुल बांधने शुरू किए। गहलोत ने राज्यों के खासकर राजस्थान के विकास के लिए, सोनिया गांधी को श्रेय दिया। जो मोदी को नागवार गुजरा। गहलोत के भाषण के बाद मोदी ने, जैसे ही मंच से गहलोत की खिंचाई शुरू की, गहलोत कार्यक्रम बीच में ही छोड़कर चलते बने, कि मोदी जी जो चाहे सो बोलें। मैं जा रहा हूं।
मोदी ने अपने भाषण में कहा, कि गहलोत जी ने बताया है, कि उन्हें दिल्ली क्या-क्या देता है। आशीर्वाद दे रहा है। मुझे कुछ नहीं मिल रहा है। मैंने अपने बलबूते गुजरात को बनाया है। गहलोत के जाने के बाद भी मोदी चुप नहीं हुए और विकास के एक-एक मुद्दे पर, गहलोत के राजस्थान से अपने गुजरात की तुलना करते रहे।
मोदी ये जताने में सफल रहे, कि किस तरह विकास के पैमाने पर गहलोत से वे मीलों आगे हैं। राजस्थान में इन दिनों हो रही, बिजली कटौती को भी निशाना बनाते हुए मोदी ने कहा, कि कुछ राज्यों में बिजली आना ही सरप्राइज है। अभी गहलोत जी कह रहे थे, कि उनके पास आठ हजार मेगावाट बिजली है, लेकिन इससे आधी तो गुजरात के पास सरप्लस है।
सेशन के मध्य, कई प्रवासी भारतीयों के मोदी के समर्थन में हूटिंग, तालियां बजाने और मोदी से, राजस्थान और केंद्र के शासकों को प्रेरणा लेने की सलाह से, कार्यक्रम में मौजूद यूपीए सरकार के केंद्रीय प्रवासी मामलों के मंत्री वायलार रवि बौखला गए। रवि ने मंच पर आकर एक प्रवासी भारतीय को झिड़क दिया, कि वे सलाह न दें, न ही व्यक्तिगत सवाल करें, दोनों में जमकर बहस हुई। वायलार रवि ने कहा, कि ये मंच व्यक्तिगत मामलों के लिए नहीं है, आप रूल-रेगुलेशन का पालन करिए। क्या समझते हैं आप।
इस घटनाक्रम से, गहलोत इतने व्यथित हो गए, कि बाद में निवेश के मुद्दे पर प्रवासी भारतीयों से बात करने भी नहीं गए। राजस्थान के पवैलियन में चार मंत्रियों ने निवेशकों का सामना किया, जबकि गुजरात औऱ झारखंड के पवैलियन में वहां के मुख्यमंत्रियों ने खुद कमान संभाली। राजस्थान के पवैलियन में निवेशकों ने मुख्यमंत्री गहलोत को बुलाने की मांग भी की। लेकिन गहलोत नहीं आए।

Saturday, October 20, 2012

एक श्रद्धांजलि...भारत-चीन युद्ध के 50 वर्ष,


भारत-चीन युद्ध के 50 वर्ष, पर एक श्रद्धांजलि 
वन्देमातरम, भारत-चीन युद्ध के सैनिकों  शहीदों को नमन.....20 अक्टूबर 1962 को आरंभ हुआ व भारत-चीन युद्ध लगभग एक महीने तक चला था, जिसमें लगभग 4,000 जवान शहीद हुए थे। भारत और चीन के बीच युद्ध के 50 वर्ष बाद भी लोग इसका स्मरण करते पाए गए हैं। आजादी के बाद भारत का यह पहला युद्ध था, जिसमें उसे बुरी तरह पराजय देखनी पड़ी।..सन 1962 का भारत-चीन युद्ध. हर दिन सुबह से देर रात तक समाचार सुनना, तथा हताशा में डूब जाना. नेफा में लड़ाई चल रही
 थी; वहां केमांग वैली, बोमडीला, तेजपुर आदि के नाम हर रोज सुनने को मिलते थे 

 देश ने 50 वर्ष बाद भारत-चीन युद्ध के शहीदों का स्मरण व सम्मान 
किया गया  सैनिक तो सदा ही जान हथेली पर लिये रहते हैं, पर शहादत का स्मरण बड़ी आवश्यक बात है; उनकी याद को, शहादत को जीवित रखना  कवि प्रदीप ऐ मेरे वतन के लोगो' सरीखे देशभक्ति गीतों के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने 1962 के भारत-चीन युद्ध के मध्य शहीद हुए, सैनिकों की श्रद्धांजलि में ये गीत लिखा था...भावनात्मक तौर पर उन 4,000 जवानों को याद करना है....भारत ने 1962 के भारत-चीन युद्ध में शहीद हुए, सैनिकों को स्मरण कर 50 वर्ष के अवसर पर आज शहीदों का सम्मान.किया और इंडिया गेट स्थित अमर जवान ज्‍योति पर शहीदों कोश्रद्धांजलि दी गई ......

ऐ मेरे वतन् के लोगो ! तुम खूब लगा लो नारा ! ये शुभदिन है हम सबका ! लहरा लो तिरंगा प्यारा, पर मत भूलो सीमा पर ! वीरों ने है प्राण गँवाए ! कुछ याद उन्हें भी कर लो -२ ! जो लौट के घर न आए -2, ऐ मेरे वतन के लोगो ! ....एक श्रद्धांजलि

भारत चीनी आक्रमण से भारत ने सीखा है, कि आज के विश्व में यहाँ कमजोर देशों के लिए कोई स्थान नहीं है ... हम अपने स्वयं के निर्माण के एक अवास्तविक लोक में रह रहे हैं "
भारतीय प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा 1963 में, चीन के हाथों भारत की शर्मनाक हार के बाद, राज्यसभा में बयान' आया था  यह एक ऐसा नेता, जो सदा अपने स्वयं के काल्पनिक "चश्मे से अंतरराष्ट्रीय राजनीति देखता रहा, का एक आंख खोलने वाला वक्तव्य है  
1962 के भारत चीनी सीमा युद्ध में हार से उसे पता चला है, कि यहाँ वास्तव में विश्व की राजनीति में कमजोर देशों के लिए कोई स्थान नहीं है 
", राजनीतिक और कूटनीतिक क्षेत्रों में भी, महत्वपूर्ण परिवर्तन 1962 प्रकरण के माध्यम से आया था, और अधिक यथार्थवाद लाने का," भारत और चीन के बीच सीमा युद्ध के, आधिकारिक भारतीय इतिहास आलेख से 
भारत - चीन युद्ध गाथा, भारत के लिए आंख खोलने वाली थी  लेकिन 45 वर्ष बाद भी भारत के लोगों को पराजय की सही परिस्थितियों और कारण पता नहीं है, कि भारत की हार के लिए कारण, राजनैतिक नेतृत्व के रहे हैं  जनता के बीच लोकप्रिय धारणा है, कि चीन ने भारतीय विश्वास को धोखा दिया है और लद्दाख और नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी (नेफा) के क्षेत्र में हमारी सुरक्षा पर आक्रमण किया  वास्तव में हमारे नेता भ्रम के काल्पनिक लोक में रह रहे थे 
एक बात यह है, कि प्रतिकूल वातावरण में भारतीय सैनिकों द्वारा दिखाए गए अनुकरणीय साहस का फल था, कि दु:ख कष्ट के समय में पूरे राष्ट्र को एकजुट बनाये रखा  यह कहा जाता है कि वे जानते थे, उनकी मौत निश्चित है, तब भी राइफलों को छोड़ गए नहीं  नमन,... नमन,... नमन,...
उनके साहस को, 'ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आँख मुझे भरलो पानी', हार के बाद कवि प्रदीप द्वारा लिखे अमर गीत, में अभिव्यक्त किया जा सकता है 
आगे, ..तब यह गीत भारतीयों की आँखों में आँसू ले आया, जब यह 26 जनवरी, 1963 को, नई दिल्ली में सत्ता की पार्टी की बैठक में लता मंगेशकर द्वारा गाया गया था  गीत समाप्त हो गया, नेहरू आँसू बहाने लगे
आज तक, भारतीयों को यह गीत, हिमालय में भारतीय जवानों के सर्वोच्च बलिदान का स्मरण दिलाता है 
विश्लेषकों के मुताबिक, दोनों, चीन और भारत में 1962 के युद्ध के बारे में आलेखों, के नव वर्गीकरण के बाद, के नए तथ्यों के कारण एक विचार, युद्ध से पहले चीनी नीयत - प्रयोजन के बारे में उभरा है  आगे है....

Friday, October 19, 2012

अब जालसाज दमानिया अर्थात तीस्ता सीतलवाद -2


अब जालसाज दमानिया अर्थात तीस्ता सीतलवाद -2
भूमि जंजाल में स्वयं भी फंसीं अंजलि दमानिया -
नई दिल्ली।। भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी पर किसानों की भूमि 'हड़पने' का कथित आरोप लगाने वालीं, अंजलि दमानिया, स्वयं भी इसी तरह के विवाद में घिर गई हैं। इंडिया अंगेस्ट करप्शन (आईएसी) की दमानिया पर आरोप है कि उन्होंने खेती की भूमि खरीदने के लिए, स्वयं को गलत ढंग से किसान प्रमानित किया और बाद में भूमि का उपयोग ('लैंड यूज') बदलवा कर, उसे प्लॉट बना कर बेच दिया। क्या यह सत्य नहीं है ?
उल्लेखनीय है कि वास्तव में, आईएसी की नई 'मख्य नेत्री' अंजली दमानिया का एक परिचय और भी है। वह 'एसवीवी डिवेलपर्स' की निदेशक भी हैं। जिस जगह उन्होंने गडकरी पर भूमि हड़पने का आरोप लगाया है, उसी के आसपास दमानिया की भी 30 एकड़ भूमि है। दमानिया ने 2007 में 'करजत तालुका के कोंडिवाडे गांव' में आदिवासी किसानों से उल्हास नदी के पास भूमि खरीदीं। आदिवासियों से भूमि खरीदने की शर्त पूरी करने के लिए, उन्होंने पास के कलसे गांव में पहले से किसानी करने का प्रमाणपत्र जमा किया।
क्या यह सत्य नहीं है ? अपनी 30 एकड़ की भूमि के पास ही, दमानिया ने 2007 में खेती की 7 एकड़ भूमि और खरीदी थी, जिसका उपयोग बदलकर उन्होंने बेच दिया। करजत के दो किसानों से उन्होंने भूमि लेते समय खेती करने का वादा किया था, लेकिन बाद में उस भूमि पर प्लॉट काटकर बेच दिए। दमानिया के अनुसार, रायगढ़ के जिलाधीश ने भूमि का उपयोग बदलने की अनुमति दी थी। क्या यह आलेख सही और पूरी जानकारी देकर बने है ?
इस बारे में प्रतिक्रिया मांगे जाने पर दमानिया ने कहा कि उन्होंने कुछ भी गैरकानूनी नहीं किया। उन्होंने बताया, "मैंने 2007 में खेती की भूमि खरीदी थी और इसके बाद रायगढ़ के जिलाधीश कार्यालय में उपयोग बदलने के लिए आवेदन किया था । 2011 में इसे स्वीकार कर लिया गया और इसके बाद 37 प्लॉट बेचे गए।" वे इस बारे में सारे आलेख दिखाने को तैयार है। यदि कोई सोचता है कि मैंने कुछ गलत किया है, तो फिर भूमि उपयोग बदलने का सरकार का नियम गलत है। युग दर्पण की मान्यता है, कि यदि यह सरकार के नियम का गलत उपयोग है, तो आदिवासियों के हक़ हड़पने का कार्य, 420 का कार्य है।
उल्लेखनीय यह भी है कि पहले दमानिया और गडकरी के बीच अच्छे मित्रवत सम्बन्ध थे, लेकिन प्रस्तावित कोंधवाने डैम में पड़ रही 30 एकड़ भूमि बचाने में गडकरी से 'भरपूर मदद' न मिलने के कारण वह भाजपा अध्यक्ष के खिलाफ मोर्चा खोल बैठीं। दमानिया ने सिंचाई विभाग को प्रस्तावित डैम को 500 से 700 मीटर स्थानांतरित करने का आग्रह किया, ताकि उनकी (?) भूमि बच सके। उन्होंने 10 जून 2011 को लिखी चिट्ठी में कहा, 'सरकार सर्वे के द्वारा जान सकती है, कि यहां 700 मीटर के आसपास कोई निजी भूमि नहीं है, केवल आदिवासियों की भूमि हैं। हमें पूरा विश्वास है, वह पर्याप्त मुआवजा देकर अधिग्रहीत की जा सकती हैं।' उन्होंने चिट्ठी में लिखा, कि यदि उनकी (?) भूमि बच गई, तो उनका जीवन बच जाएगा।
आरोप है, कि इससे बात न बनने पर, दमानिया ने गडकरी से भी पैरवी की चिट्ठी सिंचाई विभाग को लिखवाई, लेकिन यह भी काम न आया। गडकरी की चिट्ठी से भी बात न बनने के बाद, दमानिया ने सिंचाई विभाग के घोटाले को प्रकट करने की ठान ली, लेकिन इसमें गडकरी ने कोई सहायता करने से मना कर दिया। यहीं से दमानिया की गडकरी से लडाई शुरू हो गई। नए प्रकटकरण से यह प्रशन उठने लगे हैं, कि दमानिया सरकार की सहायता से, गडकरी पर किसानों की भूमि हड़पने का आरोप लगा रही हैं, लेकिन उनकी नैतिकता उस समय कहां थी, जब उन्होंने अपनी भूमि बचाने के लिए, आदिवासियों की भूमि अधिग्रहीत करने की मांग की थी ।