Pages

Sunday, March 10, 2013

ऐ दिल तूँ हताश न हो !


ऐ दिल तूँ हताश न हो !
देश की वर्तमान दुर्दशा से कई बार कई मित्र हताश हो जाते हैं 
चल सभ्यता की ढहती दीवार से हम कहीं दूर चलें ये कहते हैं मित्रो,
                     ऐ दिले बेकरार तू हताश न हो के ये दिन डूब गया, 
                     रात भर का है मेहमान अँधेरा किसके रोके रुका है सवेरा 
दूर जाकर भी जब चैन नहीं पाया तब मेरे मित्र बताओ कहाँ जाओगे, 
अच्छा या बुरा जैसा भी है समाज मेरा है सुधारना ही लक्ष्य है मेरा; 
घर किराये का नहीं है मेरा अपना ही, साफ करने का सोचना है मुझे,
सोने की चिड़िया के पर नोच दिए दुष्टों ने, दवा इसको लगाना है मुझे। 
-तिलक YDMS, 9911111611. 

http://jeevanshailydarpan.blogspot.in/2013/03/blog-post_10.html
http://satyadarpan.blogspot.in/2013/03/blog-post.html
http://samaajdarpan.blogspot.in/2013/03/blog-post_10.html
http://raashtradarpan.blogspot.in/2013/03/blog-post_10.html
http://yuvaadarpan.blogspot.in/2013/03/blog-post_10.html

No comments:

Post a Comment

Feel free to Comment. Your comment is our guide to serve you better. Tilak
कृपया प्रतिक्रिया दें, आपकी प्रतिक्रिया से संशोधन और उत्साह पाकर; हम आपको श्रेष्ठतम सामग्री दे सकेंगे | धन्यवाद -तिलक संपादक