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Thursday, May 24, 2012

"ज़िन्दगी "
ज़िन्दगी .......मौत की किताब का पहला पन्ना ,
जैसे -जैसे पन्ने पलट रहे है ज़िन्दगी घट रही है ...
हाँ........ बीच में एक हवा का झोंका आया था जिससे कई पन्ने फडफडा कर एक साथ पलट गए ......
पर क्या हुआ.. अभी तो किताब की बहुत सी उम्र बाकी है ,
हाँ है तो पतली सी 64 पेज की पर एक एक अध्याय समझने में एक एक ज़िन्दगी लग जाएगी !
मैंने भी उन बैरन हवाओं का चेहरा पहचान लिया है ,
और एहतियातन इस किताब पर एक कवर चढ़ा लिया है , अब जो भी पन्ना खोलता हूँ तो दोनों पन्नों के बीच में तजुर्बों की कलम रख देता हूँ !
अब ये हवाएं चलती तो है पर मेरा कुछ भी अनहित नहीं कर पाती ........
राज़ ...........

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