हम उधर हाथ बढ़ाते हैं,
जिसे पाना सरल हो,
फिर चाहे वो गरल हो,
हमारी आकांक्षा रहती है
वही पाने की,
जिसे पाना सरल नहीं होता;
क्योंकि जो सहज सुलभ होता है
वह विनीत होता है;
वह आकांक्षा नहीं जगाता,
विनय को कौन सुनता है
शक्ति की सदा पूजा होती है,
चाहे वो शक्ति सत्ता की हो,
भुज बल, धन बल अथवा हो जन बल की,
जब सत्ता निरंकुश हो जाये अधर्म कहलाता है,
उस पर अंकुश धर्म,
सत्ता उस अंकुश को माने तो धर्म सत्ता,
न माने तो
धर्म व न्याय की रक्षा में होता है
धर्म युद्ध.
- तिलक, संपादक युग दर्पण 9911111611जिसे पाना सरल हो,
फिर चाहे वो गरल हो,
हमारी आकांक्षा रहती है
वही पाने की,
जिसे पाना सरल नहीं होता;
क्योंकि जो सहज सुलभ होता है
वह विनीत होता है;
वह आकांक्षा नहीं जगाता,
विनय को कौन सुनता है
शक्ति की सदा पूजा होती है,
चाहे वो शक्ति सत्ता की हो,
भुज बल, धन बल अथवा हो जन बल की,
जब सत्ता निरंकुश हो जाये अधर्म कहलाता है,
उस पर अंकुश धर्म,
सत्ता उस अंकुश को माने तो धर्म सत्ता,
न माने तो
धर्म व न्याय की रक्षा में होता है
धर्म युद्ध.
देश की मिटटी की सुगंध, भारतचौपाल!
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