जीवन मेला- कहीं रेला कहीं ठेला, संघर्ष और झमेला,
कभी रेल सा दौड़ता है यह जीवन, कहीं ठेलना पड़ता। रंग कुछ भी हो हंसते या रोते हुए जैसे भी जियो, फिर भी यह जीवन है। सप्तरंगी जीवन के विविध रंग, उतार चढाव, नीतियों विसंगतियों के साथ दार्शनिकता व यथार्थ जीवन संघर्ष के आनंद का मेला है।
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- तिलक रेलन आज़ाद वरिष्ठ पत्रकार,
संपादक युगदर्पण®2001 मीडिया समूह YDMS👑 9971065525, 09911111611, 09999777358.
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